आराम करते करते…
आराम की नींद खो गयी...
वो थक कर सोने की...
मेरी चाहत हो गयी...
कुछ इस तरह गुज़रा यह समा...
की ज़िन्दगी थम गयी...
मेरे ख़्वाबों की कश्ती...
कही दूर डूब गयी...
यह किस्मत है हमारी...
या कर्म अच्छे है...
सर पे छत है...
हाथों मैं निवाला
बहार अगर देखो...
तो बहुत अजीब नज़ारा
कई मील पैदल चल...
कुछ कदम घर ढूंढ रहे...
जो मज़दूर थे कल...
वो आज मजबूर हो गए...
बोझ उठाने वाले हाथ...
आज मांगने को उठ रहे
दो वक़्त की रोटी के लिए...
बदनसीब हो गए
पिता की हिम्मत टूट रही...
बच्चों की भूक से...
बच्चों की हंसी के लिए...
ममता तरस रही ...
मज़हब के सियासी
देश को बाट रहे...
मज़हब को सब माने...
मज़हब की कोई न सुने
मौला की सुनता है... तो इंसान बन जा...
कही बहक के तू... हैवान न हो जा...
यही वक़्त है तेरा... उतार दे क़र्ज़ मिट्टी का...
सोच सभी के लिए... खुदगर्ज़ ना हो जाना
आराम की नींद खो गयी...
वो थक कर सोने की...
मेरी चाहत हो गयी...
कुछ इस तरह गुज़रा यह समा...
की ज़िन्दगी थम गयी...
मेरे ख़्वाबों की कश्ती...
कही दूर डूब गयी...
यह किस्मत है हमारी...
या कर्म अच्छे है...
सर पे छत है...
हाथों मैं निवाला
बहार अगर देखो...
तो बहुत अजीब नज़ारा
कई मील पैदल चल...
कुछ कदम घर ढूंढ रहे...
जो मज़दूर थे कल...
वो आज मजबूर हो गए...
बोझ उठाने वाले हाथ...
आज मांगने को उठ रहे
दो वक़्त की रोटी के लिए...
बदनसीब हो गए
पिता की हिम्मत टूट रही...
बच्चों की भूक से...
बच्चों की हंसी के लिए...
ममता तरस रही ...
मज़हब के सियासी
देश को बाट रहे...
मज़हब को सब माने...
मज़हब की कोई न सुने
मौला की सुनता है... तो इंसान बन जा...
कही बहक के तू... हैवान न हो जा...
यही वक़्त है तेरा... उतार दे क़र्ज़ मिट्टी का...
सोच सभी के लिए... खुदगर्ज़ ना हो जाना