अपनों से छुपने की ज़रुरत क्यों आन पड़ी...
रात को निकल कर कतल करने की क्यों आन पड़ी...
नहीं होते है वोह फौजी जो छुपकर निकलते है...
रात के सन्नाटो मे पेड़ो को कतल करते है...
ऐ धरती हमे हो सके तो माफ़ करना...
इंसान की भूख तुझको निगल गयी...
तू तोह माँ है... तूने सिर्फ देना ही जाना...
पर हम कपूत निकले... बस लेना ही हैं जाना...
उन बच्चोंने लड़ी लड़ाई दिल से थी...
वह जेल भी गए... गालिआं भी सुन ली...
पर माफ़ करना जो ना आरे को बचा पाए...
यह कविता अगर जगा दे कुछ सोये हुओ को अगर...
तोह समझूंगा के मैंने भी कुछ कमा लिया...
वर्ना आज तोह इंसान ही खो गया...
चाँद रुपयों की ख़ातिर आज माँ को बेच दिया...
रात को निकल कर कतल करने की क्यों आन पड़ी...
नहीं होते है वोह फौजी जो छुपकर निकलते है...
रात के सन्नाटो मे पेड़ो को कतल करते है...
ऐ धरती हमे हो सके तो माफ़ करना...
इंसान की भूख तुझको निगल गयी...
तू तोह माँ है... तूने सिर्फ देना ही जाना...
पर हम कपूत निकले... बस लेना ही हैं जाना...
उन बच्चोंने लड़ी लड़ाई दिल से थी...
वह जेल भी गए... गालिआं भी सुन ली...
पर माफ़ करना जो ना आरे को बचा पाए...
यह कविता अगर जगा दे कुछ सोये हुओ को अगर...
तोह समझूंगा के मैंने भी कुछ कमा लिया...
वर्ना आज तोह इंसान ही खो गया...
चाँद रुपयों की ख़ातिर आज माँ को बेच दिया...
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